অনুবাদ কবিতা
শমীক জয় সেনগুপ্ত
মীরাবাঈ: ষোড়শ শতকের সময়ে রাজস্থানের মারোয়ার প্রদেশে মেরতা অঞ্চলের রাজকুমারী ছিলেন মীরা। যোধপুর শহরের প্রতিষ্ঠাতা মান্দোরের রাও যোধারের পুত্র রতন সিং যোধারের একমাত্র মেয়ে মীরা, চিতোরের কুলবধূ , ভোজরাজের স্ত্রী মীরা। তাঁর প্রেম ভক্তি ও জীবনের সব চাওয়া পাওয়া, অনুভূতি উজাড় করে দিয়েছিলেন শ্রীকৃষ্ণের পায়ে। রানী থেকে হয়ে উঠলেন সাধিকা; সাধিকা থেকে উত্তীর্ণ হলেন প্রেমে পাগলিনী এক প্রেয়সীতে যাকে কৃষ্ণপ্রিয়া রাধারানীর সঙ্গে ভক্ত মন একাসনে বসাতেও দ্বিধা করেনি। কৃষ্ণ প্রেমের পাগলিনী মীরা নির্দ্বিধায় গায়ে কলঙ্কের কালিও মেখে নিয়েছিলেন। ঘর ছেড়ে বৃন্দাবন ও দ্বারকায় আশ্রমিকের জীবন কাটিয়ে দিলেন আরাধ্য গিরিধরের ভজনা করে।
মীরার যে সকল পদ গিরিধর গোপালকে নিয়ে বিরোচিত তার মধ্যে একটা জিনিস খুব স্পষ্ট। গানগুলো যেমন সহজ সরল ভাষা ও ভাব নিয়ে তৈরি তেমনই তা সাধারণ মানুষের মন ছুঁয়ে যায়। অনাবশ্যক ভাষার আড়ম্বর নেই, নেই কোন রূপক বা আড়াল। মীরার প্রেমের মতোই তার পদগুলি শাশ্বত ও সোজাসাপটাভাবে লেখা। এই গানগুলির অনুবাদ করতে গিয়ে বারবার যে কথা মনে হয়েছে ঈশ্বর এবং মানুষ কখন যেন এক আসনে বসে একে অপরের সঙ্গে সুখ-দুঃখ আবেগ ও অনুভূতি ভাগ করে নিচ্ছে।
যদি জিজ্ঞেস করেন কেন মীরার পদ আমি অনুবাদ করছি তবে বলবো ছেলেবেলা থেকে মীরাবাঈয়ের গল্প এবং তাকে শেখা প্রথম মীরার ভজন, যা অনেক ধেড়ে বয়সে এসে জানতে পারলাম, কার গান। আবার কিছু কিছু জায়গায় একই পদকে একাধিক বার অনুবাদ করেছি। মীরার গান তো আসলে মীরার-ই গান। তার গানের স্বাদ বর্ণ রূপ এগুলো কোনভাবেই আমি বদলাতে চাইনি। অতিরিক্ত আধুনিকরণ করতেও চাইনি। চেয়েছি পাঠক যেন বাংলাটা পড়েই সেই মারোয়ারি ভাষায় লেখা পদগুলোর আসল স্বাদ অনুভব করতে পারেন। কতটা কৃতকার্য হয়েছে জানিনা কিন্তু চেষ্টাটা সম্পূর্ণ আন্তরিক।
অনুবাদ করা পদগুলি
১ম পদ
थाँणो काँई काँई बोल सुणावा म्हाँरा साँवरां गिरधारी।।टेक।।
पूरब जणम री प्रीत पुराणी, जावा णा गिरधारी।
सुन्दर बदन जोवताँ साजण, थारी छबि बलहारी।
म्हाँरे आँगण स्याम पधारो, मंगल गावाँ नारी।
मोती चौक पुरावाँ ऐणाँ, तण म डारां बारी।
चरण सरण री दासी मीरां, जणम जणम री क्वाँरी।।
थाँणो काँई काँई बोल सुणावा म्हाँरा साँवरां गिरधारी।।टेक।।
पूरब जणम री प्रीत पुराणी, जावा णा गिरधारी।
सुन्दर बदन जोवताँ साजण, थारी छबि बलहारी।
म्हाँरे आँगण स्याम पधारो, मंगल गावाँ नारी।
मोती चौक पुरावाँ ऐणाँ, तण म डारां बारी।
चरण सरण री दासी मीरां, जणम जणम री कंवारी
অনুবাদ:১ (ভাষানুবাদ)
না জানি কি কি কথা তাঁর বলি
আমার কালাচাঁদ মদন মোহন
চাইলে পরেও ছাড়ানো না যায় রে
জন্মান্তরে এ বাঁধন
আমার কালাচাঁদ মদন মোহন
সুন্দর ও মুখ দেখে প্রিয়ের
হৃদয়ে এঁকেছি ছবি
কুঞ্জে এলো শ্যাম, গাও মঙ্গলগীত
শব্দে বাঁধুক তাকে কবি
ও-ও শব্দে বাঁধুক তাকে কবি
আমার কালাচাঁদ মদন মোহন
না জানি কি কি কথা তাঁর বলি
তাঁর ওই চলার পথে ছড়িয়ে মানিক
দেহ ও মন দেবো সঁপে
চরণাশ্রিত সেবিকা মীরার
মনোবাঞ্ছা পূর্ণ হবে।
অনুবাদ ২: ভাবানুবাদ
ঘনমেঘপুঞ্জ-বরণ আমার গিরিধারী
শতমুখেও তোমার গাঁথা বলতে যে না পারি
জন্ম থেকে জন্মান্তর শাশ্বত এই প্রেমে
ভেসেই যাব অনন্তকাল, একটুও না থেমে
হৃদয়ে চিত্রিত ও মুখ, বড্ড বেশী প্রিয়
কুঞ্জে এলে নন্দদুলাল জয়ধ্বনি দিও
চলার পথে বিছিয়ে দেব সুপ্তি - দেহ - মন
চরণদাসী তোমার মীরার এটাই নিবেদন।
২য় পদ
मनमोहन कान्हा विनती करू दिन रेन,
राह तके मेरे नैन अब तो दर्श बिना कुञ्ज बिहारी मनवा है बे चैन,
मनमोहन कान्हा विनती करू दिन रेन,
प्रेम की डोरी तुम संग जोड़ी हम से तो न ही जाए गी तोड़ी,
हे मुरली धर कृष्ण मुरारी तनिक ना आवे चैन,
राह तके मेरे नैन अब तो दर्श बिना कुञ्ज बिहारी मनवा है बे चैन,
मनमोहन कान्हा विनती करू दिन रेन,
जन्म जन्म से पंथ निहारु,
बोलो किस विध तुम को पुकारू,
हे नटनागर हे गिरघारी,काह ना पावे वैर
राह तके मेरे नैन अब तो दर्श बिना कुञ्ज बिहारी मनवा है बे चैन,
मनमोहन कान्हा विनती करू दिन रेन
অনুবাদ
মনমোহন কানাই মিনতি করি দিনরাত
প্রতীক্ষায় আঁখিপাত
দর্শন দাও প্রভু কুঞ্জবিহারী ঘোচাও এ মন-সংঘাত
যে মায়া বাঁধনে বেঁধেছ মিত
তা ছেদ করা সাধ্যাতীত
হে বংশীধর কৃষ্ণ মুরারি
থামাও চিত-অভিঘাত
প্রতীক্ষায় আঁখিপাত
দর্শন দিয়ে কুঞ্জবিহারী
মেটাও হৃদি-দ্বৈরথ
মনমোহন কানাই মিনতি করি দিনরাত
প্রতিটি জনমে পথ চেয়ে আছি
কিভাবে ডাকলে আসো আরও কাছাকাছি
ও গো নটবর, সোনা গিরিধারী
করছো কেন উৎপাত
প্রতীক্ষায় আঁখিপাত
দর্শন দাও প্রভু কুঞ্জবিহারী ঘোচাও এ মন-সংঘাত
৩য় পদ
मतवारो बादर आए रे, हरि को सनेसो कबहुँ न लाये रे।।टेक।।
दादर मोर पपइया बोलै, कोयल सबद सुणाये रे।
(इक) कारी अँधियारी बिजली चमकै, बिरहणि अति डरपाये रे।
मन रे परसी हरि को चरण, लिसते तो मन रे परसी हरि को चरण
অনুবাদ
আকাশ ভেঙে কালো মেঘের ব্যাপক চলাচল
মেঘ গর্জায় তবুও তার ছেলে ভোলানো ছল
মত্ত দাদুর ময়ূর দোয়েল কোকিল শুধুই ডাকে
নিরর্থক শব্দ কেবল হরিনাম না থাকে
কালো করে আকাশ ছেয়ে চমকে ওঠে আলো
বিরহানলে মীরার চোখে বিদ্যুৎ চমকালো
মনই একা নিজের মতন চরণ ছুঁয়ে যায়
মীরার নয়ন তবুও মগন প্রেমের প্রতীক্ষায়।
অনুবাদ
শমীক জয়
0 comments:
একটি মন্তব্য পোস্ট করুন